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हज कमेटी की दीवार को भगवा रंग में रंगना योगी सरकार का मानसिक दिवालियापन – रिहाई मंच
कानून व्यवस्था पर विफल सरकार फर्जी मुठभेड़ों से ठोक रही है अपनी पीठ
लखनऊ 5 जनवरी 2018। रिहाई मंच ने लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश हज कमेटी की दीवार का रंग भगवा रंग से रंग देने को योगी सरकार की मानसिक दिवालियापन करार दिया है। मंच ने आरोप लगाया है कि भाजपा ऐसी हरकतें करके रोजगार और कानून-व्यवस्था की नाकामियों को छुपाने की कोशिश कर रही है। मंच ने बाराबंकी समेत अलीगढ़ और शामली में छोटे-छोटे अपराधियों को फर्जी मुठभेड़ों में मरवाने का भी आरोप लगाया है।
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि योगी सरकार द्वारा हज कमेटी की दीवार को भगवा रंग से रंगना साबित करता है कि योगी की दिलचस्पी कानून-व्यवस्था दुरूस्त करने और किसानों-नौजवानों से किए गए चुनावी वादों को पूरा करने में नहीं बल्कि सरकारी दीवारों को अपने कपड़े के रंग में रंग देने का है। यह एक गम्भीर मानसिक बीमारी है। जिससे योगी से पहले का कोई भी मुख्यमंत्री पीड़ित नहीं था। उन्होंने तंज किया कि पाखंडी जोगियों के बारे में पूर्वांचल में कहावत है कि ‘मन ना रंगायो, रंगायो जोगी कपड़ा’। यानी वो योगी पाखंडी है जो अपना मन नहीं बल्कि सिर्फ कपड़ा रंगवाता है। योगी ने अपने इस पाखंड को विस्तार देते हुए अपने कपड़ों से बढ़कर पूरे प्रदेश की दीवारों तक को रंगना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि पूरे देश में भगवा के नाम पर अराजकता फैली हुई है कहीं कोई गुंडा जयपुर हाईकोर्ट की छत पर भगवा लहरा दे रहा है तो कहीं कोरेगांव में भगवा झंडा बंधी लाठियों से दलितों को पीटा जा रहा है।
बाराबंकी के जैदपुर में हुए पुलिस मुठभेड़ जिसमें आजमगढ़ निवासी रईस के घायल होने के बाद पकड़े जाने का दावा किया गया को फर्जी बताते हुए बाराबंकी के वरिष्ठ अधिवक्ता रणधीर सिंह सुमन ने कहा है कि पुलिस की पूरी कहानी ही प्रथम दृष्टया फर्जी प्रतीत होती है जिसकी जांच कराने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है। उन्होंने कहा कि राजधानी में दिन दहाड़े हत्याएं हो रही हैं, महिलाओं के साथ पूरे सूबे भर में बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं लेकिन योगी सरकार बीस हजार अपराधियों पर से मुकदमे हटवा रही है तो वहीं इस पर जनता सवाल न उठाए इसलिए छोटे-मोटे अपराधियों के साथ फर्जी मुठभेड़ दिखा कर खुद अपनी पीठ भी ठोक रही है।
द्वारा जारी
अनिल यादव
प्रवक्ता रिहाई मंच लखनऊ
8542065846
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भीमा कोरेगांव कि घटना पर मीडिया का खेल शुरू हिन्दूओं में बांटी जाति
पुणे| नया साल के शुरुआत में भीमा कोरेगांव में दलित और भगवा में हिंसक झड़प हुई. हर साल की तरह 1 जनवरी को मुम्बई के भीमा कोरेगांव में दलित समाज शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं. 1 जनवरी को दलित समाज शौर्य दिवस ही मना रहा था तभी भगवा झंडा लिए कट्टर आरएसएस संगठनों ने विरोध किया जिसको लेकर दोनों तरफ से जम कर पत्थराव हुआ. इस पत्थराव में एक युवक की मौत हो गई. उसके बाद ही हिंसा ने भयानक रूप धारण कर लिया.
खबरों के मुताबिक़ आपको बता दे की महाराष्ट्र में 200 साल पुराने एक युद्ध को लेकर ये झड़प हुई. 1 जनवरी 1818 में पूणे में राज करने वाले ब्राह्मण शासक पेशवाओं को अंग्रेजों से दलितों ने मिल कर हरवाया था. इस जीत को दलित शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं. बीते दिनों की घटना के बाद 8 दलित संगठनों ने आज महाराष्ट्र बंद का एलान किया था.
गौर करनेवाली बात ये हैं कि चुनाव के समय दलित हिंदू बन जाते हैं. चुनाव में भाजपा और आरएसएस दलितों को भी हिंदू कहने लगते हैं. यही वजह हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में दलितों की एक मात्र पार्टी बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी.
अब सीधे मुद्दे पर आते हैं मुम्बई की इस घटना को मीडिया दलित बनाम हिंदू संगठन बना कर दिखा रही हैं. सवाल ये उठता हैं कि क्या दलित हिंदू समाज में नहीं आते या फिर सिर्फ चुनाव में ही दलित हिंदू बन जाते हैं.
ऐसी घटनाओं पर मीडिया में खूब चुस्की ली जाती हैं. जब कही दो धर्मो में विवाद होता हैं. वहां भी मीडिया आग लगाते हुए हिंदू बनाम मुस्लिम का दंगा दिखाती हैं. मुम्बई की घटना पर कुछ ऐसी ही न्यूज एबीपी ने लगाया हैं. घटना को हिंदू बनाम दलित बताया हैं.
गुजरात दंगा: 15 साल के लम्बे समय में कोर्ट बदला, जज बदले, मगर नहीं मिला तो इंसाफ?
अहमदाबाद| गुजरात दंगे में नरोदा गाम की वह भयानक मंजर जिसे अपनी आँखों से देखा और वहां के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए वर्षो से केस लड़ रहे एडवोकेट शमशाद पाठन. दंगे से लेकर कोर्ट तक की कहानी बता रहे शमशाद पठान की जुबानी.
नरोदा गाम कांड के वो 15 साल जहां न्याय के लिये लड़ते, तरसते 110 परिवार और इस बीच जज साहबो का प्रमोशन और रिटायरमेंट? 27 फरवरी 2002 की सुबह भी औऱ सुबह की तरह बिल्कुल सामान्य थी लेकिन किसी को यह नही पता था कि 58 कारसेवकों के लिए वो अंतिम सुबह होगी और इसी बीच गोधरा में एक ट्रेन हादसा हो जाता है 58 कारसेवकों की मृत्यु हो जाती है, और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्हें गोधरा पहुंचते ही लोगो के गुस्से का सामना करना पड़ा. क्योंकि उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और अभी की तरह रेल हादसे आम बात थी जिस को लेकर लोगो मे गुस्सा था लेकिन एक शातिर नेता क्या होता है पहली बार महसूस हुआ जब नरेंद्र मोदी ने एक हादसे के लिए पूरे गुजरात के मुसलमानों को अपने निशाने पर ले लिया और अपनी राजनीति चमकाने के लिए देश की बहुमती जनता के मन मे मुसलमानो के खिलाफ नफरत का जहर भर दिया और क्रिया और प्रतिक्रिया की बात कर लोगों को भड़काया और परोक्ष रूप से दंगाइयो को यह संदेश भी दे दिया कि दंगाइयों को प्रशासन की पूरी मदद भी मिलेगी।
यही से नरोदा गाम कांड की तैयारी शुरु हो गई थी क्योंकि नरोदा गाम कांड के अपराधी नम्बर 23 बाबू उर्फ बाबू बजरंगी ने खुद इस बात को स्वीकार किया है कि उसने यह बात गोधरा में ही कह दी थी कि इसका बदला कल नरोदा में लेंगे, और अगले दिन सुबह 28 फरवरी 2002 को नरोदा गाम के 110 परिवारों को तत्कालीन MLA और भाजपा नेता माया कोडनानी और विहिप के महामंत्री जयदीप पटेल की अगुवाई में दंगाइयों ने चारो तरफ से घेर कर 110 परिवारों को पूरे दिन दंगाइयों ने पुलिस की मौजूदगी में खूब दंगा किया और निर्दोष 11 लोगों को जिंदा जला कर मार डाला तथा 110 परिवारों के घरों में लूटफाट करने के बाद जला दिया। जैसे तैसे लोग अपनी जान बचा कर वहाँ से निकल पाए। लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार यही नही रुकी और उन्होंने अपराधियों की जम कर मदद भी की थी. उनकी गिरफ्तारी ना हो और अगर गलती से किसी गिरफ्तारी हो गई तो उसे जेल से किस तरह बाहर निकाला जाए उसके भी सारे इंतेजाम स्वयं नरेंद्र मोदी ने ही किये यह भी आरोप अपराधी नम्बर 23 बाबू उर्फ़ बाबू बजरंगी ने एक खोजी पत्रकार को बताई थी, इस बीच नरोदा गाम कांड के चार जांच अधिकारियों को नरेंद्र मोदी के द्वारा बदला गया लेकिन आखिर कार NHRC के द्वारा दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने नरोदा गाम कांड सहित 9 केसो के लिए SIT का गठन कर दिया।
SIT के सामने बहुत सारे नये सबूत आये लेकिन नरोदा गाम कांड में माया कोडनानी और दूसरे 86 लोगो की ही गिरफ्तारी हुई और बाद में स्पेशल कोर्ट में इनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर केस भी चलाया जा रहा है. मगर वही नरेंद्र मोदी ने भाजपा नेताओं को दंगो के केस में बचाने के लिए अमित शाह को गवाही देने के लिए भी भेजा था और इस केस में तीन अलग अलग जजों ने अब तक केस की सुनवाई की है लेकिन पीड़ितों को न्याय का अभी भी इंतजार हैं।
एक बार फिर नरोदा गाम कांड की सुनवाई कर रहे एक और जज श्री पी बी देसाई साहब भी कल रिटायर हो जाएंगे वकील के तौर पर नए जज को पूरा केस फिर से समझाने की चुनौती हम सब वकीलों पर है, और साथ ही पीड़ितों के सवाल की हमे न्याय कब मिलेगा. न्याय का इंतजार करते हुए कई पीड़ित साथियों की मृत्यु भी हो चुकी है लेकिन फिर भी जो साथी लड़ रहे हैं. उन तमाम साथियों के हौंसले बुलंद है और वही हमारे जैसे लोगो को हिम्मत भी देते हैं। पीड़ितों की न्याय की लड़ाई की लम्बी फेहरिस्त है लिखने के लिए शब्द ख़त्म हो जाएंगे लेकिन नरोदा गाम कांड के पीड़ितों की लड़ाई बयान नही हो पाएगी. लेकिन इसी उम्मीद के साथ पी बी देसाई साहब अपने रिटायरमेंट के बाद लोगो को न्याय मिले ऐसे कुछ प्रयास करे और नरोदा गाम केस में जो भी नए जज साहब आए वो संवेदनशील हो. पीड़ितों के दर्द को महसूस करते हुए पीड़ितों को जल्द न्याय दे. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने नौ केसो के लिए SIT का गठन किया था बाकी सारे केसो में फैसले आ चुके हैं।
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असीम अरुण और विजय सिंह मीणा के बयानों में अन्तर्विरोध आईएस के नाम पर गिरफ्तारियों पर उठा रहा है सवाल- रिहाई मंच
7 मार्च की घटना को लेकर भी असीम अरुण और दलजीत चौधरी के बयानों में उपजे थे अन्तर्विरोध
एटीएस उन वेबसाइटों को ब्लाॅक करवाए जिन्हें वो मानती है आतंकी वेबसाइट
रिहाई मंच जल्द लाएगा जांच रिपोर्ट
लखनऊ 22 अप्रैल 2017। रिहाई मंच ने उत्तर प्रदेश के बिजनौर से दो युवकों समेत महाराष्ट्र, पंजाब और बिहार से 9 लोगों को आईएस के नाम पर उठाए जाने को आतंकवाद के नाम पर पूरे देश में भाजपा के पक्ष में मुस्लिम विरोधी माहौल बनाने की योजना का हिस्सा बताया है।
आतंकवाद से जुड़े केसों को लड़ने वाले और रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि गिरफ्तारियों के बाद बिजनौर-शामली को आतंकवाद का गढ़ कह बदनाम करने वालों को जानना चाहिए कि यहां से गिरफ्तार इक़बाल, नासिर हुसैन, याकूब, नौशाद जैसे नवजवान अदालतों से बाइज्जत बरी हो चुके हैं।
रिहाई मंच द्वारा जारी बयान में मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा है कि एक तरफ एटीएस आईजी असीम अरुण आईएस के नाम पर हुई इन गिरफ्तारियों को 7 मार्च को लखनऊ में हुए सैफुल्लाह फर्जी मुठभेड़ से जुड़ा हुआ बात रहे हैं तो वहीं आईजी लोक शिकायत विजय सिंह मीणा ने इन गिरफ्तारियों पर लखनऊ में सैफुल्लाह या उसके गैंग से संबंध न होने का बयान दिया है। उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह सैफुल्लाह की हत्या के बाद एटीएस औऱ केंद्रीय ऐजेंशियों ने आईएस के खोरासान मॉड्यूल का नाम लिया था जिसको बिजनौर समेत देश के अन्य हिस्सों से हुई गिरफ्तारियों के बाद असीम अरुण बोल रहे हैं। जबकि उसी दिन 8 मार्च को एटीएस एडीजी कानून व्यवस्था दलजीत चौधरी ने आईएस से जुड़े होने की बात से इन्कार कर दिया था। वहीं सैफुल्लाह मुठभेड़ पर जब ये सवाल उठा कि उसके पास घातक हथियार नहीं थे तो क्यों मार दिया गया तो असीम अरुण ने इसे पुलिस से हुई चूक बताया।
राजीव यादव ने कहा कि गिरफ्तारियों के बाद इस बार भी सुरक्षा ऐजेंशियों का बयान आया है कि इनका सीधे आईएस से जुड़ाव नहीं है पर ये उससे जुड़ी जानकारियों से रेडकलाइज़ होकर घटनाएं अंजाम देने की कोशिश में थे। उन्होंने कहा कि ऐसे में तो इन ऐजेंशियों पर सवाल उठता है कि आखिर वो देश में ऐसे विचारों से जुड़े वेबसाइट को प्रतिबंधित क्यों नहीं करते। क्या उन्हें बस सिर्फ इस बात का इंतज़ार रहता है कि लोग ऐसे विचारों के संपर्क में आएं तो उन्हें वे गिरफ्तार करें। ऐसे विचारों को रोकने में इनकी भूमिका न होना सवाल उठता है कि क्या इनको फैलाने में इनकी रुचि है।
राजीव ने कहा कि लखनऊ में सैफुल्लाह फर्जी मुठभेड़ के वक्त भी मीडिया के जरिए असीम अरूण ने दावा किया था कि वह आईएस का खतरनाक आतंकी है जिसके पास से हथियारों, विस्फोटकों और आतंकी साहित्य का जखीरा बरामद हुआ है। लेकिन इस जघन्य हत्या के दूसरे ही दिन असीम अरूण के दावों की पोल खुद पुलिस ने यह कहकर खोल दी कि सैफुल्ला के किसी भी आतंकी संगठन से जुड़े होने के कोई सुबूत नहीं मिले हैं।
रिहाई मंच महासचिव ने आरोप लगाया है कि सैफुल्ला की मौत पर उठने वाले सवालों को दबाने और उसे सही साबित करने के मकसद से बिजनौर समेत अन्य प्रदेशों से गिरफ्तारियां की जा रही हैं। जिसके लिए मीडिया के एक मुस्लिम विरोधी हिस्से के जरिए इन्हें कथित ‘खोरासान’ ग्रुप का मेम्बर बताया जा रहा है। जिसके बारे में इनके अलावा कोई नहीं जानता और मीडिया भी बिना इसकी सत्यता जांचे इसे सच की तरह प्रसारित कर रही है। उन्होंने कहा कि इन गिरफ्तारियों में भी पुलिस को कुछ भी सुबूत नहीं मिला है इसीलिए इन युवकों को इंटरनेट के जरिए आईएस के विचारों से प्रभावित होने की कमजोर और निराधार खबरें पुलिस मीडिया से प्रसारित करवा रही है। उन्होंने कहा कि एटीएस अधिकारियों को हर मुसलमान को पकड़ने या मारने के बाद उनके घर में पाई जाने वाली उर्दू या अरबी साहित्य की किसी भी किताब को आतंकी साहित्य बता देने की मानसिक बीमारी हो गई है। उन्होंने कहा कि सैफुल्ला मामले में भी असीम अरूण ने अपने इसी मनोरोग का परिचय दिया था। उन्होंने कहा कि एटीएस को पहले तो यही सार्वजनिक तौर पर बता देना चाहिए कि कौन-कौन सी किताबें आतंकी साहित्य हैं ताकि लोग उन्हें न पढ़ें। इसी तरह एटीएस को चाहिए कि वो जिन वेबसाइटों को आतंकी वेबसाइट मानती है उनको ब्लाॅक करा दे। बिना ये सब किए आतंकी साहित्य और वेबसाइट पढ़ने के नाम पर मुसलमानों को फंसाने से एटीएस अपनी छवि तो खराब करेगी ही और न जाने कितने बेगुनाहों और उनके परिवारों की जिंदगियां भी खराब कर देगी। इन फर्जी गिरफ्तारियों के ज़रिए असीम अरूण जैसे कुछ अधिकारियों को जरूर मुख्यमंत्री के करीब जाने का मौका मिल जाएगा।
राजीव यादव ने कहा कि एटीएस फिर से 2007-2008 वाला आतंक का माहौल बनाने पर तुली है। जिसमें आए दिन पुलिस आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुसलमानों को फर्जी मुठभेड़ों में मारने और फंसाने के काम में लगी थी।
द्वारा जारी
अनिल यादव
प्रवक्ता रिहाई मंच